हमारे बारे में
श्री परमधाम न्यास की स्थापना श्री चन्द्रमोहन जी ने वर्ष 2003 में अपने गुरू श्री आनंदकंद जी महाराज के निर्देश से पवित्र भूमि शुक्रताल, मुजफरनगर (उ.प्र.) में की। इस अभियान का उद्देश्य हिन्दुस्तानियों को जातिरहित व नशा मुक्त करना एवं अध्यात्म के प्रति समाज में जागरूकता फैलाना है। आज हिंदुस्तान का दुर्भाग्य है कि देश में जाति व्यवस्था व नशे का बंधन फैलता जा रहा है इसलिए जाति व्यवस्था और नशे के विरोध को ही अभियान का प्रमुख लक्ष्य बनाया गया और उदघोष दिया गया-
‘‘जाति-रहित समाज हो, नशे का नाश हो।’’
बाहर के मन्दिर को इस प्रकार समझा जाये जैसे हम भारतवर्ष का नक्शा लें और उसमें हरिद्वार देखकर कहें यह हरिद्वार है। मगर वह तो नक्शा है। उसमें गंगा कहीं नहीं बह रही है। उसी प्रकार हमारे द्वारा बनाया गया बाहरी मन्दिर केवल नक्शा है उस परमात्मा द्वारा बनाये गए सच्चे मन्दिर का।
आगे पढेंइस संसार में केवल सात मन्दिर सम्मान योग्य हैं। इसमें से एक मन्दिर परमात्मा के द्वारा बनाया गया है। बाकी के छः मन्दिर मानव ने बनाए हैं। पुजारी भ्रष्ट हो सकता है लेकिन मन्दिर नहीं इसलिए मन्दिर का हर कीमत पर सम्मान किया जाना चाहिए। सात मन्दिर यह हैं
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