मूर्तियों को पढ़ो और समझो

बाहर के मन्दिर को इस प्रकार समझा जाये जैसे हम भारतवर्ष का नक्शा लें और उसमें हरिद्वार देखकर कहें यह हरिद्वार है। मगर वह तो नक्शा है। उसमें गंगा कहीं नहीं बह रही है। उसी प्रकार हमारे द्वारा बनाया गया बाहरी मन्दिर केवल नक्शा है उस परमात्मा द्वारा बनाये गए सच्चे मन्दिर का। हमने उस परमात्मा को अपने अन्दर खोजने की बजाए बाहर बनाये मन्दिरों में खोजना शुरू कर दिया। जिस प्रकार आम को उत्पन्न करने वाला बीज उसके अन्दर होता है, फूल को उत्पन्न करने वाला बीज उसके अन्दर होता है उसी प्रकार परमात्मा ने हमारे शरीर रूपी मन्दिर का निर्माण किया और स्ंवय भी इस मन्दिर में विराजमान हो गया लेकिन हम नक्शे में ही उलझकर रह गये। बाहरी मन्दिरों को संकेत बनाया गया। इसमें जब हम जाते हैं तो घण्टों की आवाजें आती है, दीपक क ा प्रकाश आता है, खुशबू आती है। उसी प्रकार जब हम अन्दर की यात्रा करते हैं (10वें द्वार से 18वें द्वार) तो हमें आलौकिक प्रकाश घण्टे, वीणा, खुश्बू आदि का अनुभव होता है। लेकिन हमने संकेतों को ही मन्जिल समझ लिया और मूर्तियों को प ढ ने की बजाय उन्हें पूजना शुरू कर दिया। मूर्तियाँ हमें क्या संकेत दे रही हैं मूर्तियों के प्रत्येक अंग का संकेत क्या है हमें यह समझना चाहिये। जैसे - यदि हम मील के पत्थर (जो हमें दूरी बताता है) पर लिखे संकेत को पढ़ने के बजाए उसकी पूजा करनी शुरू कर दे तो क्या हम अपनी मंजिल तक पहुँच पायेंगे बिल्कुल नहीं। मंजिल तक पहुँचने के लिये हमें स्ंवय चलकर जाना होगा तब ही मंजिल मिलेगी।

गणेश मूर्ति रहस्य

गणेश अर्थात जिसकी गणना न की जा सके अर्थात विराट परमात्मा जो विराट है उसकी प्राप्ति भवानी से होगी। गणेश शंकर से नहीं भवानी से उत्पन्न हुए। भवानी का अर्थ श्रद्धा से है। परमात्मा श्रद्धा से उत्पन्न होता है। जब मनुष्य में श्रद्धा उत्पन्न होती है तभी परमात्मा प्रकट होतेे हैं। जब परमात्मा प्रकट होता है तो रिद्धि-सिद्धि, शुभ-लाभ व संतोष प्राप्त होता है। इसलिये गणेश की पत्नी रिद्धि- सिद्धि, बेेटे शुभ-लाभ व बेटी संतोष बताये गये। रिद्धि-सिद्धि, शुभ-लाभ, व संतोष ये कोई स्त्री या पुरुष नहीं है, अपितु ये सभी महान पुरुषों की सांकेतिक भाषा है। बड़े कान - परमात्मा सबकी सुनता है। लम्बी नाक - उसके बराबर कोई सम्मानीय नहीं है। छोेटी आँख - वह दूर दृष्टि अर्थात दूर तक देखने वाला है। मोटा पेट - अर्थात वह तृप्त है उसे तुम्हारा कुछ नहीं चाहिये। वाहन काला चूहा - काला चूहा काले मन का प्रतीक है अर्थात जिस प्रकार चूहे का या तो मुँह ही हिलता रहेगा या तो पूँछ ही हिलती रहेगी, इसी प्रकार मनुष्य का मन बहुत चंचल है, जब मनुष्य अपने मन को परमात्मा का आसन बना देता है तो उसे अभय- भोग (लड्डू) प्राप्त होता है। अगर नहीं करता तो परमात्मा के पीछे के दो हाथों में अंकुश-पाश है, अर्थात उसके कार्यों में बाधा पड़ेगी।

इसलिये मूर्तियों को पढ़ो और समझो।

दुर्गा मूर्ति रहस्य

दुर्गा = दुर्ग = आ दुर्ग = किला (18 द्वारों का मानव शरीर) आ = वह शक्ति जो मुर्दे और जीवित में अंतर करती है अर्थात - आत्मा। जो इस 18 द्वारों के हमारे शरीर रूपी दुर्ग में परम शक्ति (आत्मा यानि तुम्हारा असली रूप) है उसे दुर्गा कहते हैं। आत्मा शब्द स्त्रीलिंग है इसलिए दुर्गा को स्त्री रूप बनाया गया। शेर:- यह बहादुरी (वीरता) का प्रतीक है। जो वीर है वही परम शक्ति (दुर्गा) को जान सकता है क्योंकि वीर के ऊपर ही दुर्गा है। परमात्मा वीर को ही प्राप्त होता है। आठ हाथ:- आठ हाथ आठ दिशाओं के प्रतीक है अर्थात परम शक्ति (परमात्मा) की पहुँच प्रत्येक दिशा में है। वह सर्वत्र है। दुर्गा में समझाया गया है कि तुम्हारे शरीर रूपी दुर्ग में जो परम-शक्ति विराजमान है उसको जानो। वास्तव में यह परम-शक्ति तुम्हारा असली रूप है जब तक हम अपने असली रूप को नहीं जान पाते, तब तक हम उस परम शक्ति को दुर्गा, शिव, भगवती, परमात्मा, बह्म इत्यादि नामों से पुकारते हैं। दुर्गा को जानने के लिये 10वें द्वार से 18वें द्वार तक की परम-पवित्र यात्रा करनी पड़ती है।

इसलिये मूर्तियों को पढ़ो और समझो।

हनुमान मूर्ति रहस्य

हनुमान अर्थात जिसने अपने ‘मान’ का ‘हनन’ कर दिया हो ऐसा शिष्य जिसने अपने पूर्णगुरू पर ही ‘मन’ का पूरी तरह त्याग कर दिया हो। पूरी तरह से अभिमान या अंहकार से रहित हो गया हो। केशरिया रंग:- सूर्य, उदय के समय केशरिया रंग का होता है और अस्त के समय भी केशरिया रंग का होता है अर्थात उदय (सुख) और अस्त (दुख) में एक ही रंग में रहता है। इसी प्रकार सच्चे शिष्य के भाव पूर्णगुरू के प्रति सुख या दुख में एक जैसे रहते हैं। चाहे कुछ भी हो जाये लेकिन भाव बदलते नहीं है। लम्बी पूँछ:- पूँछ का अर्थ है प्रसिद्धि, कीर्ति, यश। सच्चे शिष्य की पूँछ बहुत लम्बी होती है। सच्चे शिष्य की पूँछ उसके पीछे होती है, आगे नहीं। वानर:- ऐसा नर जिसके लिए वाह-वाह कहा जाये। सच्चे शिष्य वानर होता है बन्दर नहीं। हनुमान पद वह शिष्य प्राप्त करता है जो पूर्णगुरू का साथ कभी भी नहीं छोड़ता पूर्णगुरू के प्रति संशयो को कभी नहीं पकड़ता। जो हमेशा यह महसूस या अनुभव करता है कि मैं राम का दूत हूँ अर्थात् मैं पूर्णगुरू का दूत हूँ।

इसलिये मूर्तियों को पढ़ो और समझो।

शंकर - पार्वती का रहस्य

शंकर:- अर्थात वह मनुष्य जो शरीर व चेतन (शरीर को चलाने वाली शक्ति) की मिलावट को जान जाता है, शंकर का अर्थ मिलावट है। पार्वती:- पार्वती श्रद्धा का प्रतीक है। उस मनुष्य के साथ हर पल श्रद्धा रहती है जो शंकर के रहस्य को जान जाता है। बैल:- बैल धर्म का प्रतीक है । वह मनुष्य श्रद्धा के साथ धर्म पर विराजमान रहता है या वह श्रद्धा के साथ धर्म पर रहता है। त्रिशूल:- त्रि- तीन, शूल-काँटे। तीन कांटे अर्थात सतो गुण, रजो गुण, तमो गुण ये तीन कांटे हैं। इन्हीं से शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, कष्ट पैदा होते हैं। वह मनुष्य इन कांटो से घबराता नहीं है क्योंकि तीनों उसके हाथ में रहते हैं। डमरू:- डमरू अनहद का प्रतीक है। तीन कष्ट (सत, रज, तम) पर अर्थात त्रिशूल पर डमरू। जो अनहद नाद में मस्त रहेगा, उसे यह तीनों शूल नहीं चुभेंगे या कष्ट नहीं देंगे। चंद्रमा:- चंद्रमा मन का प्रतीक है। वो मनुष्य मन को आँखों के ऊपर स्थापित करके रखता है, आँखों के नीचे नहीं। गंगा:- जब मनुष्य मन को आँखों के ऊपर स्थापित कर लेता है तब उसकी आँखों से ऊपर वह अमृतधारा, वह पवित्र धारा जिससे सब पाप नष्ट हो जाते हैं, प्राप्त होती है मोक्ष प्राप्त होता है, और उसका उद्धार हो जाता है। नाग:- नाग काल का प्रतीक है। काल शंकर का (अर्थात जो शरीर व चेतन की मिलावट को जान गया) आभूषण बन जाता है।

इसलिये मूर्तियों को पढ़ो और समझो।

काली मूर्ति रहस्य

काला रंग गूढ़ता का प्रतीक है। सभी रंगो के मिलने से काला रंग बनता है। काली का अर्थ है - काली अर्थात वह शक्ति जो काल (समय) को अपने वश में रखे, काल के वश में न रहे अर्थात अकाल मतलब परमात्मा। काली अर्थात अकाल (परमात्मा) सिर व खून से खुश होता है। इसका मतलब है कि परमात्मा को अगर खुश करना चाहते हो तो अपना सिर व खून परमात्मा को देना चाहिये। सिर का मतलब - अंहकार खून का मतलब - क्रोध कुछ लोग यह भी कहते हैं कि सिर कटा सकते हैं लेकिन सिर झुका नहीं सकते। तो सिर है अंहकार का प्रतीक कुछ कहते हैं कि मेरा खून खोल रहा है या उसकी आँखों में खून आ गया, इसका मतलब है - क्रोध। जब तुम अपना अंहकार और क्रोध उस परमात्मा को जो अकाल है, काली है, को अर्पण करोगे तो अकाल शक्ति तुम पर खुश होगी। तब ही तुम उस अकाल शक्ति की शरण में जाने काबिल बनोगे। किसी मूर्ति में ये भी दर्शाया गया है कि काली के चरणों में शंकर हैं - इसका मतलब है कि तुम अपनी तथा शरीर की मिलावट के बारे में जान पाआगे। इसी कारण काली मूर्ति के गले में मनुष्यों के सिर की माला तथा चरणों में शंकर है। काली (अकाल शक्ति) को अहंकार (सिर) की माला दो तब तुम्हें अपनी और शरीर की मिलावट (शंकर) के विषय में ज्ञान होगा। यही ज्ञान है।

इसलिये मूर्तियों को पढ़ो और समझो।

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